Thursday, October 24, 2013

दिन- रात सुमिरण करने का क्या अर्थ है? मुख मे और ह्रदय मे एक ही भाव बना रहे...परमात्मा है-- मै नही हू, लेकिन बहुत से लोगो ने गलत समझ ली है बात। हरे कृश्न -हरे राम वाले लोग है, वे सडको पर चीखते-चिल्लाते फिरते है हरे राम-हरे राम..।वह चीखना-चिल्लाना है, उससे कोई सार नही है। सार तो तब हैजब तुम बैठो, उठो, चलो, सो जाओ,जागो उसका भाव ना भुले। एक सतत स्मरण की धार तुम्हारे भीतर बहती रहे।उसकी भाव-धारा बनी राहे। तुम उसे भुलो ना। जैसे तुम किसी के प्रेम मे पड जाते हो, तो तुम सब काम करते हो, लेकिन भीतर , ह्रदय की धडकन मे प्रेमी का स्मरण बना रहता है।तुम उसे भूल नही पाते हो।उसकी याद बनी रहती है।एक मीठी सी पीडा ह्रदय के पास घनिभूत हो जाती है। एक कांटा चुभता रहता है।उस कांटे मे चुभन भी है, मिठास भी है।वह चुभन भी सौभाग्य है क्योकि वह चुभन भी उन्ही के जीवन मे उतरती है जो धन्यभागी है, जिन्होने श्रद्धा को पाया है, अन्यथा नही उतरती।.......

Posted by Unknown

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